नई पुस्तकें >> यादों के आईने में यादों के आईने मेंउजैर ई. रहमान
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
उजैर ई. रहमान की ए गज़लें और नज्में एक तजरबेकार दिल-दिमाग़ की अभिव्यक्तियाँ हैं। संभली हुई जबान में दिल की अनेक गहराइयों से निकली उनकी गजलें कभी हमें माज़ी में ले जाती हैं, कभी प्यार में मिली उदासियों को याद करने पर मजबूर करती हैं, कभी साथ रहनेवाले लोगों और ज़माने के बारे में, उनसे हमारे रिश्तों के बारे में सोचने को उकसाती हैं और कभी सियासत की सख्तदिली की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। कहते हैं, साजिशें बंद हों तो दम आये, फिर लगे देश लौट आया है। इन ग़जलों को पढ़ते हुए उर्दू गजलगोई की पुरानी रिवायतें भी याद आती हैं और ज़माने के साथ कदम मिलाकर चलने वाली नई गज़ल के रंग भी दिखाई देते हैं। संकलन में शामिल नज्मों का दायरा और भी बड़ा है। ‘चुनाव के बाद’ शीर्षक एक नज्म की कुछ पंक्तियाँ देखें : सामने सीधी बात रख दी है/देशभक्ति तुम्हारा ठेका नहीं जात-मजहब बने नहीं बुनियाद/बढ़के इससे है कोई धोखा नहीं।/कहते अनपढ़-गंवार हैं इनको/नाम लेते हैं जैसे हो गाली/कर गए हैं मगर ये ऐसा कुछ/हो न तारीफ से जबान ख़ाली। यह शायर का उस जनता को सलाम है जिसने चुनाव में अपने वोट की ताकत दिखाते हुए एक घमंडी राजनीतिक पार्टी को धूल चटा दी। इस नज्म की तरह उजैर ई. रहमान की और नज्में भी दिल के मामलों पर कम और दुनिया-जहान के मसलों पर ज्यादा गौर करती हैं। कह सकते हैं कि गज़ल अगर उनके दिल की आवाज हैं तो नज्में उनके दिमाग की। एक नज्म की कुछ पंक्तियाँ हैं : देश है अपना, मानते हो न/ दुःख कितने हैं, जानते हो न/ पेड़ है इक पर डालें बहुत हैं/ डालों पर टहनियां बहुत हैं/ तुम हो माली नजर कहाँ है/ देश की सोचो ध्यान कहाँ है।
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